नई पत्रिका: भारत में COVID-19 के दौरान हाश्याकृत समुदायों पर निगरानी के अनुभव
by Shraddha Mahilkar
अगस्त और सितंबर के महीनों में सोशल मीडिया के माध्यम से हमने आपके सामने कोविड 19 के दौरान की जाने वाली तकनीकी निगरानी के अनुभवों को 8 विगनेट्स के रूप में प्रस्तुत किया। अब हम आपके लिए हमारी नई पत्रिका लेकर आए हैं, जो एक ही स्थान पर सभी विगनेट्स को एक साथ जोड़ती है। भारत में कोविड-19 के दौरान हाश्याकृत समुदायों पर निगरानी के अनुभवों के कई अलग-अलग पहलुओं को बेहतर ढंग से समझने के लिए, नीचे दी गए पत्रिका को पढ़ें!
नोट: पत्रिका को बेहतर तरीक़े से देखने के लिए कृपया फुल‑स्क्रीन मोड पर क्लिक करें।
कोविड ‑19 महामारी ने भारत में तकनीकी समाधानवाद को जन्म दिया है। ड्रोन के उपयोग से कंटेनमेंट ज़ोन पर नजर रखने से लेकर, संक्रमित व्यक्तियों की ट्रैकिंग के लिए आरोग्य सेतु के अनिवार्य उपयोग तक, और, हाइपर डिजिटलाईज़ेशन जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय जानकारी और सेवाओं तक लोगों की पहुंच पर प्रभाव, से लेकर तकनीकी ज्ञान की कमी तक — महामारी के प्रभाव को रोकने के लिए इस्तेमाल में लाए गए तकनीकी समाधानवाद ने विभिन्न हाश्याकृत समुदायों के लोगों को अलग-अलग तरीके से प्रभावित और नियंत्रित करने का काम किया है, जिसके परिणामस्वरूप लोगों को कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ा और उनके अंदर भय और विश्वास की कमी पैदा हुई।
लेकिन, क्या ये उपाय महामारी को प्रभावी ढंग से रोकने में मदद कर सकते हैं? क्या वे तकनीक के क्षेत्र में जेंडर के अंतर को ध्यान में रखते हैं? क्या वे शारीरिक अखंडता, गरिमा और निजता के अधिकार से संबंधित व्यापक मुद्दों को संबोधित करते हैं? लोगों में आवश्यक सेवाओं को प्रदान करने के लिए सरकारी प्रणालियों में विश्वास और देखभाल का मूल्य क्या हो सकता है? क्या ये उपाय आगे का रास्ता हैं?
अपनी रिसर्च के दौरान हमने पाया कि, महिलाओं, दलित, मुस्लिम, ट्रांस सेक्स वर्कर, प्रवासी मजदूर और अन्य हाश्याकृत समुदायों के लोगों के ऊपर इस तरह की तकनीकी निगरानी का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह पत्रिका ऐसे समुदायों के लोगों के अनुभवों का लेखा-जोखा है। यह दर्शाती है कि कैसे तकनीकी निगरानी इन समुदायों के लोगों की गतिशीलता और एजेंसी को प्रतिबंधित करती है। यह जमीनी स्तर से इन आवाजों को सामने लाने और प्रभावित लोगों की स्थितियों में सुधार करने के लिए राज्य से लक्षित मांग करने और साक्ष्य‑आधारित नीतियां बनाने में सरकार की सहायता करने का एक प्रयास है।
पत्रिका में वर्णित अनुभव राधिका राधाकृष्णन द्वारा लिखे गए रिसर्च पेपर ‘“मैंने अल्लाह का नाम लिया और कदम बाहर रखा”: भारत में COVID-19 के दौरान निगरानी और नियंत्रण के सन्निहित अनुभव; शरीर और डेटा’, से लिए गए हैं जो कि इंटरनेट डेमोक्रेसी प्रोजेक्ट के द्वारा डाटा गवर्नेंस नेटवर्क के लिए किए गए काम का हिस्सा है।